लेखक की कलम से

रिश्ते होते हैं गुरुर आपका

रिश्ता फूल की तरह होता है चाहे वह भाई-बहन का रिश्ता हो या मां-बाप का यो प्रेमी-प्रमिका का या किसी रिश्तेदार का इन रिश्तों को निभाना भी एक कला है इनसान को पता होता है कि उसे किस रिश्ते को कैसे संभालना है इसके बावजूद वह स्वार्थ की भावना के तहत केवल अपना भला ही सोचता है और दूसरों को तकलीफ देने से पीछे नहीं हटता। ‘अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता’ वाला फार्मूला हर इन्सान आज अपनाता जा रहा है इससे रिश्तों में दूरियां आती जा रही हैं और एक समय ऐसा आता है कि रिश्ते जमाने को दिखाने के लिए सिर्फ नाम को ही रह जाते हैं चाहे अन्दर कितनी भी कड़वाहट क्यों न हो। रिश्ते जो प्यार और अपनेपन के बल पर ही आगे बढ़ते हैं उन्हें समय रहते ही संभाल लेना चाहिए नहीं तो उन्हें टूटने में देर नहीं लगती। रिश्ते अनमोल होते हैं इनका महत्व समझिये और प्यार से निभायें। अपने जीवन में भी खुशियां पायें।

©ममता गर्ग, ठाकुरगंज, लखनऊ, उत्तरप्रदेश

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