लेखक की कलम से
हमर चिन्हारी …
जल ,जंगल ,जमीन हमर चिन्हारी हरे न।
जिंयत- मरत के इही ह,संगवारी हरे न।।
पानी ह हरे भईया, हमर जिनगानी जी।
जनम-मरन तक,येकर संग मितानी जी।।
जल के बिना,दुनिया ह जल जाहि जी।
आज सिराही त,फेर कहाँ ले आहि जी।।
इही पानी ह तो इज्जत,बड़भारी हरे न—
पेड़ पौधा अउ,बचावव जंगल झाड़ी ग।
हमर पुरखा के हरे ये,सुग्घर चिन्हारी ग।।
चौदा बच्छर प्रभु ह,जंगल म बिताए ग।
महावीर बुद्ध इंहिचे, गियान ल पाए ग।।
जंगल सबे जीव जंतु के,निस्तारी हरे न–
ये भुइँया ल कहिथे, अन्नपूर्णा माता जी।
सुख समृद्धि अउ,अन्न जल के दाता जी।।
बंजर होये ले ये,भुइँया ल बचा लो जी।
अवइया पीढ़ी बर,कुछु तो बचा लो जी।।
ये भुइँया ह जिये-मरे के,अधारी हरे न—
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)