लेखक की कलम से

पलायन …

 

हुए पलायन को मजबूर

अश्कों में लहू जारी है

 

‘कोरोना’ के आगे इनकी

पेट की भूख हुई भारी है

 

गोद में है हृदय का टुकड़ा

बोझ पीठ पर भारी है

 

निवाले को पड़े हैं लाले

पैदल चलना लाचारी है

 

प्रेम भाव या करुण वेदना

या लिखूं मैं संवेदना

 

सिसक रही आज कलम मेरी

छायी कैसी ये महामारी है।

©विभा देवी, पटना

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