लेखक की कलम से
गंगा में राख बहाने मत आना …
साथी मेरे मेरे शव पर शोक मनाने मत आना
दुख के आंसू ले शैय्या में हाथ बंटाने मत आना
मन में दीप जलाकर रखना बस मेरी कुछ यादों का
मैयत पर मेरी यादों के दीप जलाने मत आना
जब भी मेरी याद सताए फूलों सा मुस्काना तुम
मुझ जैसी छोटी हस्ती पर फूल गिराने मत आना
मेरा क्या है मिट्टी हूं औ मिट्टी में मिल जाऊंगी
मैली करने को गंगा में राख बहाने मत आना
आंखें बंद करोगे तो तुम मुझे सामने पाओगे
मर बैठी हूं रो-रोकर एहसास दिलाने मत आना ….
©डॉ रश्मि दुबे, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश