लेखक की कलम से

मुस्किले दौर …

माना मुस्किले दौर से गुज़र रही है जिन्दगी,

अभी भी ज़िन्दगी जीने का जज़्बा बाकी है।

सूरज ने निकलना नहीं छोड़ा धूप आ रही है,

आज आशाओं की किरणों को खिलाना बाकी है।

फिजा में पवन बह रही है यूँ मद -मस्त होकर के,

इस हवा में खुशियों की खुशबू घुलना बाकी है।

बाग – बगीचों में कलियों से फूल बन रहे है,

दिलों में उम्मीदों का कमल खिलाना बाकी है।

कुछ जिन्दगी की जंग जीत रहे, कुछ हार भी रहे,

मगर ए दोस्त डरना नहीं, हराना बाकी है।

दूरियों ने नजदीकियों पे लगाये है पहरे,

कुछ पल ठहर अभी महफिलों का सजना बाकी है।

हर तरफ डर और दहशत का माहौल बना है,

अरे खौफ से निकल तू, हंसना- हंसाना बाकी है।

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड          

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