लेखक की कलम से

बरसात …

 

बरसात

आती तो है

मगर

भिगो नहीं पाती

उजाड़ देती है

बसते हुए घर

खेत -खलियान

लील लेती है

ज़िंदगियाँ

 

बरसात

आती तो है

मगर

भिगो नहीं पाती

पहले -सी

कहाँ बरसती है ?

 

बरसात

सूखा रहता है

मन का आँगन

खाली रहती है

स्नेह की गागर

प्यार की नदी भी

नहीं पहुँचती

दिल से दिल तक

 

बरसात

आती तो है

मगर

भिगो नहीं पाती

शायद

भीगना

भूल गया

मानव ||

 

  ©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़   

 

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