लेखक की कलम से
बदराया मौसम मुबारक
धधक रही ज्वाला ऐसे
चढ़ा लिया हो हाला जैसे
गिरते उठते जंजालों से
बचो बचाओ जैसे तैसे
कुछ करके ही मरना है
नहीं किसी से डरना है
बने चाहे कैसे भी किस्से
सदा रहें हम सच के हिस्से!
©लता प्रासर, पटना, बिहार
धधक रही ज्वाला ऐसे
चढ़ा लिया हो हाला जैसे
गिरते उठते जंजालों से
बचो बचाओ जैसे तैसे
कुछ करके ही मरना है
नहीं किसी से डरना है
बने चाहे कैसे भी किस्से
सदा रहें हम सच के हिस्से!
©लता प्रासर, पटना, बिहार