लेखक की कलम से

उड़ती कलम…..

मेरी कलम उड़ती है,
संवेदनाओं की डाल पर जा बैठती है,
टूटे शब्दों की पतवार को खींचकर,
भावनाओं के समंदर में उतारती है,
डूब कर मुझे उस पार ले जाती है,
न तूफानों की फिक्र, न तेज धारा की,
किनारे इंतजार कर रहे,
कागज की कश्ती से मिलकर,
शब्दों की पतवार समेट कर,
कलम को कागज पे उतारकर,
हर हाल में वादा निभाती भी है।

©अंशिता दुबे, लंदन

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