लेखक की कलम से

विश्वास डोल रहा है …

 

कहाँ गए वो वादे कहाँ गई वो विकास की बात।

महगाई तोड़ रही कमर अब कैसे करूँ विकास की बात।।

 

जब आये चुनाव मैदान में लोगों में जगा था विश्वास।

पर वो मिट्टी शेर ही निकला अब आगे कितना रखें आश।।

 

तुम कहते थे वो लुटेरे लूट रहे है सब मिलकर साथ।

अलग अलग घोटाला करके अपनी झोली भर रहे खास।।

 

दस वर्ष के मौनी शासक पर बार बार उठाये प्रश्न।

बद से बदतर होकर अब आम जन कर रहे है प्रश।।

 

प्रश्न उठाये जिस मुद्दे पर आज वही है प्रश्न बना।

महगाई बेरोजगारी मुद्दा आज खड़ा है प्रश्न बना।।

 

ईस्ट इंडिया वाली कंपनी गुलाम बनाया दो सतक।

अब आपकी बेचनेवाली नीति पता नही पीछे करेगी कितने सतक।।

 

देश नही बिकने का नारा अब बनकर रहा एक नया जुमला।

एक एक कर  बेच रहे हैं भारत के सब मान मर्यादा।।

 

अब तक जो भी काम किया सुधारने को अर्थव्यवस्था का फैसला।

एक एक कर उल्टा पड़ा आपका लिया हर एक फैसला।।

 

अब आपसे कितना आश रखें  आप में भी लिपटी राजनीति की चाशनी खास।

चोर लुटेरे और बेईमान से आप अपने को कैसे कहेंगे खास।।

 

डोर विश्वास अब डोल रही है जगाना होगा जनता में पुनः विश्वास।

रोजी रोजगार और महगाई से आम जन में जगाओ विश्वास।।

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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