लेखक की कलम से

अमन की आस …

वक्त के आँगन कभी तो भोर होगी,

तमस के कबीले से निकलती कोई रश्मि अमन की प्रेमिका भी होगी.!

 

कब तक कायनात यूँ लहू-लुहान सी फिरेगी,

अपने गर्भ में खूनी दरिंदों को पालती

धवल बीज की इंसान के मन से मधुपर्क सी बरसात तो होगी.!

 

क्यूँ इश्क नहीं होता अपनेपन से तुझे इंसान

मुखौटे के पीछे दबे एहसास को उतार धागा तो बुनकर देख,

प्रेम को परिभाषित करती कोई चद्दर तैयार होगी.!

 

कोरे आसमान से मन क्यूँ है सबके

भाईचारे की भावना कब्रिस्तान में बदल गई,

नफ़रत की आँधी में बह गए मजमें

मीठे मौसम की जानें कब वापसी होगी।।

 

सहस्त्र युग बीते शांत जल ओर सदाचार की गंगा देखें, मीठे जल के आबशार सूख गए,

अब तो बह रही है चारों ओर से खून की नदियाँ इसे सूखा दे वो धूप की बारिश जानें कब होगी।

©भावना जे. ठाकर

Back to top button