एक शिकार कथा …
इस मुल्क में लोकतंत्र
अब
सिर्फ एक शिकार-कथा है
एक गली से निकलता झुण्ड
दूसरी गली की ओर बढ़ा है
और,
टूट पड़ा है उन निरीह लोगों पर
जो दबे हैं
पहाड़ सी होती खुद की जिंदगी के नीचे
जंगल की तरह
सभी हैं
खौफ के साये में
नदी, नाले, पहाड़, झरना,
जिंदगी और बंदगी भी
प्रार्थनाओं से करुणा शब्द हटा लिया गया है
और
ईश्वर के होठों से आशीर्वाद शब्द छीन कर
थमा दिया गया है
हथियार उनके हाथों में
अब
प्रभु ने मुस्कुराना भी छोड़ दिया है
मैं
जरा भी हैरान नहीं हूँ
मुझे पता था कि
विराट लगने वाले वे शब्द धोखा थे
जो इस सभ्यता की
महानता के बखान में गढ़े गए थे
असल में वे बहाना थे निहत्थों पर हमलों का
जंगल की ही तरह
खरगोश और हिरणों पर
भेड़ियों के टूटने का बहाना
मुझे मालूम है
आप अदालत,
पुलिस और कानून की बात करेंगे
और पूछेंगे
यहाँ से वहां तक फैले सन्नाटे के बारे में
तो मैं ले चलूँगा आपको
फिर एक बार जंगल की तरफ,
सदियों से खड़े दरख्तों के पास
जिनकी छाँव में प्रार्थनाएं होती हैं
और
अनगिनत हत्याएं भी
हम क्या करेंगे
इन
ऊँचे दरख्तों का ?
हमें तो
हवा में लहराते हाथ चाहिए
आसमान को पहुँचते हाथ।
©अनिल सिन्हा, पुणे, महाराष्ट्र