लेखक की कलम से

बेटियां …

 

आसमान कहां तय करता है,

उड़ान उनके सपनों की।

बस,अंतिम छोर के क्षितिज तक,

उड़ना चाहती है,बेटियां ।

समुंद्र की गहराई नहीं जानती,

फिर भी महासागरों में गोते

लगाना चाहती है, बेटियां ।

कायदे वायदे उन्हें ना समझाएं,

ये दुनिया,बस हर हाल में,

रिश्ते निभाना जानती है,बेटियां।

एक घर से दूसरे घर की,

दहलीज लांघकर सब के,

दिलों में जगह बनाना

जानती है,बेटियां ।

कभी कल्पना चावला,

कभी पीटी उषा तो ,

कभी सावित्रीबाई फुले तो,

कभी लता मंगेशकर

बन जाना चाहती है, बेटियां ।

आसमान कहां तय करता है ।

उड़ाने उनके सपनों की,

बस अंतिम छोर की स्थिति

तक उड़ना चाहती है, बेटियां।

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                 

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