दर्जा हमसफर का …
(लघु कथा)
करवा चौथ पर विशेष
क्यों री यशोदा बड़ी बन ठन चली आई है, मेहंदी महावर सब लगाए हुए हैं, क्या तूने भी करवा चौथ का व्रत रखा है, अपने उस निर्दई पति के लिए जो आए दिन तुझ पर हाथ उठाता है, शराब पीता है तुझे मारता है। क्या सुख दिया है तेरे पति ने तुझे फिर क्यों उसकी लंबी उम्र के लिए व्रत कर रही है साक्षी ने अपनी कामवाली यशोदा से पूछा?
यशोदा ने कहा… हां मेम साहब रखा है व्रत अपने आदमी के लिए क्योंकि हमारे समाज में पति को भगवान का दर्जा दिया गया है। फिर चाहे भगवान सुख दे या दुख दे और मैं इसमें कर भी क्या सकती हूं, आप भी तो साहब के लिए व्रत रख रही हैं उसने पास रखे हुए करवे की तरफ इशारा करते हुए कहा।
देख यशोदा यह ठीक नहीं है, तू मेरी बराबरी अपने आप से कर रही है और साहब की अपने मर्द से। साक्षी ने थोड़े गुस्से से कहा…
ठीक कह रही हूं मेम साहब कल रात जब पार्टी में जब मैं सिंक में बर्तन रखने आ रही थी तभी मैंने आपको और सहाब को किसी बात पर बहस करते हुए सुना और साहब ने झल्लाकर अपना हाथ उठा दिया आप पर और कमरे से बाहर पार्टी में चले आए। और आप भी थोड़ी देर बाद शांत होकर पार्टी में इस तरह शामिल हो गईं जैसे कुछ हुआ ही न हो भले ही। साहब ने आपको लाखों सुख सुविधाएं दी हैं, लेकिन घर में दर्जा तो दोयम दर्जे का ही है, मेरे जैसा…
इतना कहकर यशोदा तो अपने काम में लग गई लेकिन साक्षी मन ही मन अभी भी इस बात पर मंथन कर रही थी की पति को भगवान का दर्जा क्यों, …क्यों दिया गया है। हमसफ़र का क्यों नहीं…
©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश