आज फिर एक बुद्धा की तलाश है ……….
ये नए युग का परावर्तन तो नहीं,
कि झूठ भी यथार्थ बन जाता है,
नालंदा के ज्ञानद प्रांगण में,
आज अज्ञानी भी ज्ञानी का पद पा जाता है।
सच को सच कहने के लिए,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ये महाबोधि की शिराओं में,
कौन सी गरम हवा बहने लगी है,
जो कभी सभ्यता रचने की बातें कहती थीं,
आज गोधरा के साथ उसकी भी लाश बहने लगी है।
जिजीविषा की हद जानने के लिए,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
कौन नरेश है कौशल का अब,
जो प्रजा के लिए रोता है,
बाण लगे शब्दों का भी,
तो अपने रक्त से उसे धोता है।
ऐसे राज्य की कल्पना के लिए,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ज्ञान-दान-दीक्षा की झोली खाली ही रह जाती है,
क्यों इस व्यथा पे भी ये वसुंधरा चुप रह जाती है ?
जो ज्योति हुई प्रज्वलित यहाँ युगों पहले,
आज वो अन्धकार से क्यों डर जाती है ?
वही चिर ज्योति पाने को,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ये नदी नालों में कुम्हलाए पलाश नहीं,
ये दम तोड़ती इच्छाओं की कतार है,
जो पौरुष मृत्यु को भी जीत लाता था,
आज वही वीभत्स घटनाओं का क्यों आधार है ?
शक्ति की परिभाषा समझने को,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ये शरीर नहीं शाश्वत, ना ही ये प्राण शाश्वत है,
इस दुर्बोध संसार में बस ज्ञान शाश्वत है,
जीवन की सफलता इसको जीने में है,
बस यही एक सत्य शाश्वत है।
जीवन का सारांश समझने के लिए,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।