लेखक की कलम से

कथनी और करनी में अंतर …

 

यह कहावत काफी प्राचीन है तथा इसका अंतर समय-समय पर देखने में आया है।

 

कोरोनावायरस के प्रथम चरण में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व भारत के विश्व प्रसिद्ध अस्पतालों के डॉक्टरों ने जनता को सुझाव दिया कि कोरोनावायरस के लिए मास्क पहनना है, 2 गज की दूरी रखनी है तथा साबुन से बार-बार हाथ की सफाई करनी है, और भीड़भाड़ वाले इलाकों पर इकट्ठे नहीं होना है।

पहले की कोरोना में काफी लोग बीमार हुए, तथा काफी संख्या में जनमानस की हानि हुई। लाकडाऊन लगने के कारण जनमानस कीआर्थिक दशा काफी गिर गई तथा देश के व्यवसाय उद्योग बंद हो गए।

उसके बाद में 5 राज्य विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें कोरोनावायरस से बचने के उपायों का खुलकर दुरुपयोग हुआ। केंद्र के बड़े-बड़े नेताओं द्वारा इन राज्य में रैलियां की गई, जिसमें लाखों लोगों की भीड़ जुटाई गई तथा करोड़ों रुपयों का रैली में इस्तेमाल हुआ। इन सब को राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किया गया। यह कौरोना काल के दूसरे काल के दौरान हुआ जब प्रत्येक राज्य में काफी संख्या में पहले की अपेक्षा बीमारी दर तथा मृत्यु दर पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ गई थी।

पूरे देश में ऑक्सीजन दवाई बीमार रोगी को अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं थे वे अस्पताल के बाहर ही श्वास छोड़ रहे थे। उनके तीमारदार इस सबके लिए अस्पताल वह सरकार को दोषी मानते हैं।

इस समर्थन में विभिन्न उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्रीय सरकार को दोषी माना गया तथा उनको काफी बुरा भला कहा गया।क्याकि एक लोकतंत्र देश में मर्यादा व जिम्मेदारी को भूलकर नेता लोग अपने निहित स्वार्थ में लगे हुए हैं।

देश के अंदर ऑक्सीजन दवाई को ऊंची धनराशि पर ब्लैक करना जो इस माह पर देखने में आया। इसके लिए सरकार का कोई भी ठोस कानून लागू नहीं किया गयान ही इस घटना से सरकार ने कोई नसीहत ली।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जिला पंचायत चुनाव प्रधान व सदस्यों का चुनाव भी इसी दौरान कराकर कोरोना के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ।

जिससे कोरोना के रोगियों की संख्या में ज्यादा बढ़ोतरी हो गई ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार का कोई समुचित इंतजाम नहीं है जिससे अधिक संख्या में जनमानस की अकाल मृत्यु हो रही है। मेरा अपना मत है कि उपरोक्त मुहावरा शत-प्रतिशत यहां लागू होता है।

 

©नरेश गर्ग, खुर्जा, बुलंदशहर              

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