लेखक की कलम से
मैं और तुम …
फ़कत ये भी सही नहीं
तुम कहो सही और सब सही
बहता गया और तुम बहाते गए
बात ये भी सही नहीं
चलना था और दूर तक चलना था
तुम ठहरे जहाँ वहाँ ठहरना सही नहीं
रेत-रेत बस रेत उड़ता हैं जहाँ
तुम माँग बैठे पानी
माँग ये भी कुछ सही नहीं
तुम देखो और उस ओर मत देखो
जहाँ देखना सबको लगे सही -सही
सोचो और मिट्टी सोचो
मटके में भरे हरे नोट नहीं
तुम दौड़ो और तेज़ी से दौड़ो
रहे जहाँ पर पड़े कांटे ओर -ओर
तुम रहो मौन और उस स्तर पर रहो
जहाँ मूर्ख बोले मीठी बोल
डरो और वहाँ डरो
जहाँ देख हंसे बालक अबोध
सुनो सही और सब सही
करो वही जो रहे केवल सही-सही
©शहज़ादी खातू, आसनसोल, पश्चिम बंगाल