मीठे एवं कड़वे स्पर्श …
आई जब भूलोक पे पाया ममता का पहलि स्पर्श,
लगाया जब सीने से मां ने एक तृप्ति सी मिली,
मिला हो जैसे प्यासे को सागर,
छुआ जब पिता ने तो आसरा मिला,
बड़े भाई के स्पर्श में सुरक्षा का कवच मिला।
खेल कूद में ना जाने कैसे कब किस ने छुआ,
कच्ची उम्र में किसी ने आगे तो किसी ने पीछे स्पर्श किया,
धक्क से रह गई तड़प के जब किसी अपने का ही हाथ बदन पे पाया,
चढ़ती जवानी भी चढ़ गई सब की आंखों में शराब के नशे सी,
चुभती रही वो सब के सीने में तीर सी,
करते रहे शरीर की सारी बनावट का स्पर्श वो अपनी शैतान नज़रों से,
कोई छुए इधर से तो कोई छुए उधर से, डर और लाज से सिले थे होंठ मेरे,
अपनों ने लूटा-खसोटा, ना रहा कुछ बस में मेरे।
हुई बड़ी ब्याही गई,
पहला स्पर्श मिला मोहब्बत का कड़कती सर्दी में अलाव सा सेंक मिला,
वो तेरे प्यार का स्पर्श देता मुझे चांद की चांदनी सी शीतलता,
छुअन तुम्हारी जगाती मन में अहसास ने,
अरमान नए, देता तन-मन को सुकून वो स्पर्श,
कभी आई जो दूरी हम में तो,
विरह का प्यारा सा स्पर्श मिला,
ज्यों जेल से छूटे कैदी को घर मिला,
कभी ना कहने पर मिला खुरदुरी मिट्टी सा स्पर्श
सह भी ना पाई और कह भी ना पाई,
ऐसी मोहब्बत मुझे कभी ना भाई,
तड़पा गया वो स्पर्श,
एक घाव दिल पे लगा गया वो स्पर्श।
बच्चों का स्नेहिल स्पर्श देता अपनेपन का अहसास वो,
एक उम्मीद की किरण,
एक बंधाता इस वो।
ढलती उम्र में अनछुआ सा स्पर्श तुम्हारा
निढाल बाहों ने दे कर सहारा शब्दों का साथ छोड़ दिया,
तन का नहीं तब मन का साथ हुआ,
आत्मा ने आत्मा का स्पर्श कर लिया।
अन्तिम स्पर्श जो मिला पिया से बिदाई का,
सुकुन मिल गया रूह को ।
©प्रेम बजाज, यमुनानगर