लेखक की कलम से
ना जाने वक्त पे…
न जाने कोनसा खत मिल जाए
टूटी हुए अलमारी से पुराना वक्त मिल जाए
पत्तो की तरह बिखर गई है जिंदगी
समेट लाए मुझे ऐसा शक्स मिल जाए
ना जाने वक्त पे पाबंदियां क्यू है
वो सब्र को साथ लाए मुझे उजड़ा घर मिल जाए
© विशाल गायकवाड, वर्धा महाराष्ट्र
(अफसाना एक शायर का)
वर्धा महाराष्ट्र