लेखक की कलम से

ज़िन्दगी कब्र-गाह में…

अच्छे को बेहतर बनाने की चाह में

हम अकेले ही निकाल पड़े राह में

 

गांव-गांव, शहर-शहर मिला लोगों से

तफसीर ना मिली किसी की सलाह में

 

कोई खुश मिला तो कोई ग़म में डूबा

गजब का इंतजार सब की निगाह में

 

बाद मुद्दत कुछ भी ना हासिल हुआ

डरते हुये पहुंचा खुदा के बारगाह में

 

खुशी मांगू मैं या फिर मांग लूं शुकूं

तो सजदा करने पहुंच गया दरगाह में

 

‘ओजस’ भला किसी का कर ना सका

थककर बैठ गया ज़िन्दगी कब्र-गाह में

 

©राजेश राजावत, दतिया, मध्यप्रदेश          

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