ख़्याल तुम्हारे…
ख़्याल हैं तुम्हारे बारिशों की तरह। बरस पड़ते हैं दिल की ज़मी पर।।
किस क़दर घुली है इनमें
कच्ची अमराई की सुगंध
निश्छल नेह की मकरंद
और कच्ची उम्र की लड़ाई भी
खट्टमिट्ठा स्वाद ठहरा सा है ज़ुबां पर ।
पलकों पर टंकी शफ्फ़ाक रात थी
चांद से गुफ़्तगू जो साथ की
रोशन पुंज वो आप्लावित
करता रूह को उत्कीर्ण है हृदय पर।
कभी न ख़त्म होने वाली
बातें वो शहद के धारों सी
भिगो भिगो जाते फव्वारों सी
अकूत ख़ज़ाना था वो यहीं कहीं पर।
संदली हवा का संस्पर्श था
कि जागृत हुआ गुनगुनाना
मन में सजा कोई मासूम तराना
कैसे वे रेशमी सिरे खुलते रहे
गुलाबी एहसासों के, दिल पर।
एक पल में बातें सदियों सी
बीत गई वो सदी भी पल सी
क्या, क्यूं ,कैसी, कब थी जानी
भावों की इस यात्रा में
उद्गम है, अंत कहां पर!
ख़्याल है तुम्हारे बारिशों की तरह, बरस पड़ते हैं दिल की ज़मी पर।
©अनुपमा अनुश्री, भोपाल, मध्य प्रदेश
परिचय – एमएससी, एलएलबी, मॉरिशस में अध्यापन, आकाशवाणी में प्रोग्राम एंकर, हिन्दी रेडियो शिकागो के लिए एंकर, अंतरराष्ट्रीय व देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेख व रचनाओं का प्रकाशन, न्यूजीलैंड व कनाडा में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन, अध्यक्ष आरंभ, चेरिटेबल फाउ्ंडेशन एवं विश्व हिन्दी संस्थान कनाडा ब्रांच मध्य प्रदेश.