लेखक की कलम से

दिवाली मन गई …

ऑबरोय हाउस में आज दिवाली की रौनक और महफ़िल खूब जमी थी। मिस्टर अशोक ऑबरोय दिल्ली के जाने माने बिल्डर और बिज़नेस मेंन है और अरबपति की श्रेणी में विराजमान है। हर दिवाली उनकी हवेली दोस्तों और रिश्तेदारों की दावत और महफ़िल से गूँजती रहती है। आज भी सुबह से अशोक ऑबरोय की पत्नी मायादेवी मेंहमानों की ख़ातिरदारी में व्यस्त थी। दस दिन पहले आई नई कामवाली रजनी को मायादेवी ने सारा काम समझा दिया था। रजनी बाईस साल की छरहरे नैंन नक्श वाली दिखने में सुंदर और स्मार्ट थी। पर कहते है ना गरीब के घर रतन पैदा हुआ बस उपर वाले ने वही किया एक रुपवती को गरीब की झोली में ड़ाल दिया था। बहुत कम समय में रजनी ने सारा काम बखूबी समझ लिया।

अपनी काम करनेकी कुशलता और सहज स्वभाव से सबका मन जीत लिया था। हर कोई हर छोटे बड़े काम के लिए रजनी को ही आवाज़ लगाते। रोशनी, पटाखें, रंगोली, मेंहमानों के ब्रांडेड कपड़े और परफ़्यूम से पूरी हवेली चहक महक रही थी। और फिर बड़े लोग, बड़ा घर बड़ी शानो शौकत की बड़ी आदतें उसमें शराब कबाब की कमी तो रहेगी ही नहीं। विहान अशोक ऑबरोय और मायादेवी का बड़े बाप का बिगड़ा हुआ बेटा था।

दिवाली मनाने अपने सारे दोस्तों के साथ हवेली की पाँचवी मंज़िल पर जश्न मना रहा था। शराब, सिगरेट, जुआ और चरस के नशे में चूर सब झूम रहे थे की शराब के लिए बर्फ़ खत्म हो गई। विहान ने रजनी को इंटरकोम से बर्फ़ लाने के लिए बोला। रजनी अपनी ड्यूटी निभाते बर्फ़ लेकर पाँचवी मंज़िल पर गई। आज दिवाली थी तो मायादेवी ने रजनी को गुलाबी रंग की महंगी सलवार कमीज उपहार में दी थी। जिसमें रजनी का रुप झील में तैरते कमल सा खिल उठा था जिसे देखकर विहान के सारे दोस्तों के दिमाग में वासना के साँप लौटने लगे।

जैसे ही बर्फ़ की ट्रे रखकर रजनी जाने के लिए मूड़ी एक लड़के ने रजनी की कलाई पकड़ ली और अपनी तरफ़ खिंचकर जबरदस्ती करने लगा, तो सारे लड़को के दिमाग पर पर कामदेव का भूत नाचने लगा। फिर क्या ? इतने सारे मजबूत हाथों की हथेलियों ने रजनी के तन को मच्छर की तरह मसल दिया। रजनी के मुँह में रजनी के ही सिने से उतरा दुपट्टा ठूँस कर ज़ालिमों ने रजनी की इज्ज़त को तार-तार कर दिया। छटपटाते हिरनी शांत हो गई। मायादेवी बहुत समझदार थे रजनी को नीचे आने में देर हुई तो समझ गए। अलमारी से एक चीज़ निकाली और पाँचवी मंज़िल पर पहुँच गए। और वहाँ का नज़ारा देखते ही समझ गए।

गहरी साँस लेते बेटे का मोह त्याग कर एक बेटी की इज्ज़त का बदला लेने की ख़ातिर बिना कोई शोर शराबा किए शांत सहज और निर्लेप भाव से साड़ी के पल्लू से एक छोटा सा शस्त्र निकाल कर अपने बेटे के सर का निशाना लगाया, और पटाखों की गूँज के साथ एक चीख मिलकर हवेली के चिराग को बुझा गई। मायादेवी इतना ही बोले आज असत्य पर सत्य की विजय हुई। राम ने शायद रावण की देह में थोड़ी जान बख़्श दी थी जो आज शायद मेंरे हाथों शांत होनी थी। मैं आज बहुत खुश हूँ मेंरी दिवाली मन गई।

 

©भावना जे. ठाकर

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