लेखक की कलम से
प्रेम भाव..
प्रेम की परिभाषा एक ऐसी,
इससे हर कोई अनजान है।
यही एक मात्र शब्द ऐसा,
जिससे सबकी पहचान है।।
प्रेम की ही बोली ऐसी होती,
जिसने सबको बांध रखा है।
बरना इन दुनिया में हर कोई,
बस बिराना और बेजान है।।
दो मीठे शब्दों के खेल में पराए भी शामिल होते है,
आज के इस दौर में देखो अपनो ने भी मुंह मोड़े है।
प्रेम की ही वाणी में दुनिया की मोह माया है,
कड़वे सच से यह बात पते कि झूठे जग की यही छाया है।।
सब कुछ छोड़ दिया है सबने पहचानी प्रेम की भाषा है,
प्रेम भाव का नाम लिया तो इच्छा से सबने अपनाया है।
रंग बेरंग दिखा कर अपने मन से कुछ नहीं बोले है,
मन ही मन खटकते सबको पर जुंबा से कुछ न कोई बोलें है।।
©सुरभि शर्मा, शिवपुरी, मध्य प्रदेश