लो आ गया बसंत …
लेकर मौसम परिवर्तन का संकेत
पेड़ों से झर गए सारे पीले पात
हो गयी धरती पर खुश रंगों की शुरुआत
फूटे है बासन्ती स्वर
उग आया है नव अंकुर
खेतों में है फूली सरसों
राहों में खड़ा है अमलताश
जंगल में खिला है सुर्ख ढाक तो
बागों में बोरौं से लदे है आम
फूल फूल पर घूम घूमकर
भँवरे उनको छेड़ रहे है
शीतल मंद पवन से तरु भी
धीरे धीरे झूम रहे है
चाँद की धवल रौशनी में
झिंगुर बजा रहे शहनाई है
उसके संग पपीहे ने भी
अपनी टेर लगाई है
करके पायल सी झनकार
गूँजे कोकिल डार डार
बाजते मृदंग चंग रंग
और उड़े अबीर गुलाल
देख ऐसी छटा निराली
धरती लायी अधरों पर मुस्कान
कर रही हो जैसे
सृष्टि की उत्पत्ति का गुणगान
यही दिवस जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ
यही दिवस जब भारत में
काल गणना शुरू हुआ
समझो तो प्रकृति की सही बात, वो
मौसम के संग समझा रही है
साज़ बाज़ सहित देखो
आज ऋतु बसन्त आ गयी है …
©नीलम यादव, शिक्षिका, लखनऊ उत्तर प्रदेश