लेखक की कलम से
लकड़हारे की गुड़िया …
लकड़हारे ने मारी कुल्हाड़ी
गिरा दी टहनियां सारी।
बोली पत्ती, छोड़ दो हमें
क्यों की हैं ये दुश्वारी?
बोला लकड़हारा हैं लाचारी
बिटिया है एक छोटी हमारी।
उसको देना हैं दाना-पानी
करनी है उसकी इच्छाएं पूरी।
चहचहाते आयी चिड़िया
बोली एक है जादुई गुड़िया।
उससे मांगों चीजें सारी
होंगी पूरी जरूरतें तुम्हारी।
दौड़ते हुए बोला लकड़हारा,
“छोड़ दिया लो वृक्ष तुम्हारा।
नहीं करूंगा किसी को तंग
मुझे मिल गया है सहारा।”
©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश