अपराध की राजनीति और विकास के मायने …
जब राजनीति का ही अपराधीकरण हो गया हो तब अपने मलीन स्वार्थों के लिए वर्तमान राष्ट्रभक्त नेता एक सामान्य विकास को विकास दुबे बनाते ही रहेंगे… क्योंकि हमारे राजनेताओं द्वारा जनभावनाओं का कद्र करने और सम्मान करने की भावना ही बहुत पीछे छूट चुकी है…कारण कि हम खुद इस कदर संवेदनहीन और आत्मकेंद्रित हो चले हैं कि हमको इन घटनाओं से अब कोई फर्क ही नहीं पड़ता….और इस फर्क नहीं पड़ने की हमारी भयावह आदत का बड़े शिद्दत से लाभ उठा रहे है..राष्ट्रभक्त का लबादा ओढ़े..हमारे षडयंत्रकारी कथित वर्तमान नेता..जो अपने हिसाब से पुलिस तन्त्र को भ्रष्ट औऱ ध्वस्त कर अपराध का जमकर विकास कर चुके हैं।
मेरी सहानुभूति विकास दुबे जैसे पात्र से नहीं हैं। किन्तु हमारे जैसे कुछ अल्पबुद्धि के दिमाग में कुछ यक्षप्रश्न हैं जैसे कि विकास दुबे जब पुलिस के घर में ही (थाने) घुसकर राज्यमंत्री दर्जाप्राप्त नेता की गोली मारकर हत्या किया उस वक्त इसी उत्तरप्रदेश पुलिस का मान भंग क्यों नहीं हुआ था ?? उस प्रकरण में विकास दुबे को बचाने के लिए किस राजनेता या आला पुलिस अधिकारी के कहने पर न्यायालय में अपने गवाही से पलट गये थे दर्जनों पुलिस वाले…?? जब यही विकास दुबे स्कूल में घुसकर प्रिंसिपल की गोली मारकर हत्या किया तब इसी पुलिस के पेट में मरोड़ क्यों नहीं हुआ.??
पुलिस और राष्ट्रभक्त नेताओं के सहयोग और संरक्षण से विकास के चरित्र का जब इतना विकास हो गया जिसका विकास पुलिस के ही गीरेबांन तक पहुंच गया तब पुलिस के पेट में बहुत तेज दर्द हो गया। जब बात अपने दर्द की आयी तब खुद के संरक्षण में विकास हुए विकास के करतूत का दर्द समझ आया या फिर उन पर्दे के पीछे के असली सफेदपोश डायरेक्ट को विकास के विकास की अब आवश्यकता नहीं रह गयी तब….काउंटर कर्तब का नूराकुश्ती कर उप्र पुलिस ऐसा प्रदर्शन कर रही है जैसे वो प्रदेश में रामराज्य की स्थापना कर चुकी हो।
सवाल यहाँ यह है कि पुलिस के माध्यम से भी लोकतंत्र की गाड़ी ऐसे ही उलटती पलटती रही, कभी पंचर होती रही तब भविष्य में इसकी क्या गारंटी है कि इस प्रकार एनकाउंटर का खेल शातिर अपराधी तक ही सीमित रह जाएगा…?? या फिर इसका विकास कर..इस खेल को सत्तापक्ष और खुद पुलिस विरोधियों तक कैसे खेला जाएगा अनुमान जरूर लगाइएगा।
@शिवनाथ केशरवानी