लेखक की कलम से
देखो फागुन आया….
चारों दिशा हर्षित,
प्रकृति है पुलकित,
पलाश की ज्वाला,
मन भी तो रोमांचित,
देखो फागुन आया ||
मानुज को मानुज से,
बैर भाव को दूर करे,
न द्वेष न छल कपट,
ये तो रंग में रंगने को,
देखो फागुन आया ||
चाहे वन उपवन हो,
धरती के हर कोने में,
छाई पलाश की छटा,
महके महुवे की महक,
देखो फागुन आया ||
रंग दे ऐसा फगुवा मेरे,
प्रेम रंग सब जन को,
देदे वर रंग ऐसा फगुवा,
देश प्रेम के सब प्रीत लगे,
देखो फागुन आया ||
©योगेश ध्रुव ‘भीम’, धमतरी