लेखक की कलम से

औरत पहले हूं…

चलो जीजी ओर बताओ और क्या बनाना है? अपना राघव आता ही होगा, पूरे चार बरस बाद आ रहा है, शहर से पढ़ाई करके। बहुत सही करा जीजी जो तुमने उसे सही समय पर पढ़ने भेज दिया। मुझे तो बहुत फिक्र होती है अपने बेटे सूरज की। आपके देवर ने उसे शुरू से ही लड़के होने के गुरुर के साथ पाला है, कि वो लड़का है तो कुछ भी कर सकता है।

अभी तो छोटा है हम जिस सांचे में डालेंगे, ढल जायेगा। आप ही अपने देवर को समझना कि उसे अभी से हर स्त्री का सम्मान करना सीखाये।

तू फ़िक्र ना कर तुलसी, मैं देवर जी से बात करूंगी। यदि राघव तेरा बेटा है तो सूरज भी हमारा बेटा है। आखिर बेटो को अच्छे संस्कार घर से ही मिलते है। (सुलोचना ने अपनी देवरानी तुलसी) को तसल्ली दी।

इतने में ही रत्न (सुलोचना का पति) व शक्ति (तुलसी का पति) हंसते हुए राघव के साथ दरवाजे से अंदर आते हैं। ये लो भाग्यवान तुम्हारा रघु अब जितने चाहे लाड़ कर लो अपने लाल को। रत्न ने सुलोचना से कहा।

तभी शक्ति (रघु का चाचा) चल बेटा राघव जल्दी से हाथ पांव धोकर तैयार हो जा। आज तुझे गांव घुमाते हैं। चार सालों से मोटी मोटी किताबों के साथ तेरा मगज भी खाली हो गया होगा, चल इन आंखों को ठन्डक पड़ जाते, कुछ ऐसा दिखाते हैं। कुछ जवानी का एहसास भी होना चाहिए, ऐसा न हो कि तेरी जवानी ऐसे ही न बीत जाये।

ये कैसी बात करते हो देवर जी, क्या सिखा रहे हो इन बच्चों को ? मैं ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं सही लेकिन इतना अच्छी तरह जानूं हूं कि अपने लड़कों को औरत की इज्जत करना, हर नारी का सम्मान करना हम मां बाप का ही फर्ज होवे है…

खाली मर्द होने से कुछ ना होवे है, एक मर्द खुद एक औरत का मोहताज है इस धरती पर आने के लिए, फिर क्यों हम औरत का सम्मान नहीं कर सकते, क्यों हम शुरू से ही इन बच्चों के कोमल मन पर लड़के होने का गुरुर भरते हैं।

शुरू की छोटी छोटी छेड़छाड़, छींटाकशी आगे जाकर गंभीर मोड़ ले लेते हैं। इसलिए कहूं हूं देवर जी अपने सूरज को भी अभी से सम्हाल लो नहीं तो..

कहीं देर ना हो जावे।

सच कहो हो जीजी, मैं सब कुछ बरदाश्त कर सकती हूं क्योंकि मैं एक मां हूं लेकिन औरत के प्रति ये घटिया मानसिकता नहीं क्योंकि मैं एक औरत पहले हूं….

(तुलसी ने कहा)

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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