लेखक की कलम से

कितने महत्व की होगी बुलेट ट्रेन

        वर्ष 2020 आरंभ हो चुका है। इस दौर में मोदी सरकार के विभिन्न कार्यों की समीक्षा हो रही है। इसी कड़ी में बुलेट ट्रेन भी समीक्षा की परिधि से परे नहीं हो सकती। अतः सरकार का यह महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट भारत की सेहत के लिए कितने महत्व का साबित होगा, इसका आकलन करना आवश्यक है।

गौरतलब है कि वर्ष 2022 तक भारत में बुलेट ट्रेन के सुचारू संचालन का लक्ष्य रखा गया है। भारत में पहला बुलेट ट्रेन ट्रैक अहमदाबाद से मुंबई के बीच बिछाए जाने पर काम शुरु हो चुका है। इसके लिए सर्वेक्षण जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जीका) ने किया था। जापान की शिंकांसेन तकनीक पर आधारित बुलेट ट्रेन के भारत में दौड़ने के साथ ही भारत भी उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जहाँ बुलेट ट्रेन का संचालन होता है। इस जापानी शिंकांसेन तकनीक की विश्वसनीयता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 5 दशकों में जापान में एक भी दुर्घटना का मामला सामने नहीं आया। बहरहाल, अब जब भारत भी बुलेट ट्रेन का सुख भोगने जा रहा है तो ऐसे में इसके प्रभावों की समीक्षा करना समीचीन होगा।

     सर्वप्रथम ध्यान दें कि करीब 8 घंटे वाला अहमदाबाद से मुंबई तक का सफर घटकर अब करीब ढाई घंटे का रह जाएगा। इससे एक तरफ जहाँ व्यापारिक गतिविधियों में तेजी आएगी तो वहीं दूसरी ओर लोगों का समय बचेगा। व्यापारिक गतिविधियों में तेजी आने से जहाँ एक तरफ व्यापारियों का मुनाफा बढ़ने से वे क्षमता प्रसार करेंगे और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, तो वहीं दूसरी तरफ सरकार की कर प्राप्ति बढ़ने से राजस्व घाटे में कमी आएगी। दूसरा, अहमदाबाद और मुंबई के बीच ट्रेन के जो स्टेशन होंगे वहां के स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेंगे। बताया जा रहा है कि इस परियोजना के तहत करीब 40000 लोगों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार मिलेंगे। बेशक यह रोजगार का आंकड़ा देश के समक्ष मौजूद बेरोजगारी की तुलना में लेशमात्र है, परंतु फिर भी कुछ हद तक तो बेरोजगारी घटेगी। अर्थात कहा जा सकता है कि अगर इस परियोजना से कुछ बढ़ेगा तो रोजगार ही, ना की बेरोजगारी। इससे पुनः सरकार की राजस्व प्राप्ति बढ़ने के साथ राजस्व घाटे में कमी होगी।

     तीसरे, जाम की समस्या और सफ़र में देरी से तंग लोग बुलेट ट्रेन की उपलब्धता के चलते निजी कार का प्रयोग सीमित करेंगे। इसके अलावा कार का सफर ईंधन-खपत व खर्चे, दोनों के लिहाज से बुलेट ट्रेन से महँगा ही पड़ता है। फिर भले ही हवाई सफर भी बुलेट ट्रेन से तेज जरूर है, मगर यह भी ईंधन-खपत व किराए के लिहाज़ से बुलेट ट्रेन से किफ़ायती कतई नहीं है। ऐसे में लोगों द्वारा बुलेट ट्रेन को प्राथमिकता देने से तेल ईंधन की माँग में कमी आएगी। गौरतलब है कि भारत कच्चे तेल का भारी मात्रा में आयात करता है। परंतु जब पेट्रोलियम उत्पाद की माँग में कमी आएगी तो ऐसी स्थिति में कच्चे तेल के आयात में कमी आने से भारत का चालू खाता घाटा भी घटेगा।

     आगे अगर पर्यटन के लिहाज से बुलेट ट्रेन का परीक्षण करें तो देखेंगे कि इस अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन के रूट से इतर शेष भारत के लोग और गैर-बुलेट ट्रेन संचालित देशों के लोग कौतूहलवश बुलेट ट्रेन के सफर का आनंद लेने भारत आएंगे। हालांकि बुलेट ट्रेन भारत से इतर अन्य देशों जैसे अमेरिका, जापान, रूस, ब्रिटेन, चीन, बेल्जियम आदि में भी संचालित है, मगर गैर-बुलेट ट्रेन संचालित देशों के लोग भारत को इसलिए प्राथमिकता देंगे क्योंकि इन देशों की तुलना में भारत में बुलेट ट्रेन का सफर सस्ता साबित होगा। फिर यह भी कि जिन देशों में बुलेट ट्रेन चलती है वे कोतूहलवश नहीं तो इस लिहाज से भारत भ्रमण को प्रेरित होंगे कि पहले की तुलना में कम समय में ही अधिक पर्यटन स्थलों के दर्शन का आनंद उठा सकेंगे। परिणामस्वरुप भारत की गैर-कारक सेवा ‘पर्यटन’ को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी से पुनः भारत के चालू खाता घाटे में कमी आएगी।

     अब बुलेट ट्रेन का पर्यावरणीय महत्व। पेट्रोलियम ईंधन से चलने वाले तमाम वाहन, जो जाम व लंबे सफ़र के चलते सड़कों पर ‘चलते-फिरते कार्बन के कारखाने’ में तब्दील हो चुके हैं, उनकी तुलना में बुलेट ट्रेन पर्यावरण की सच्ची साथी प्रतीत होती है। अतः इससे संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के लक्ष्य प्राप्ति में भी सहूलियत होगी। इन लक्ष्यों के तहत सभी देशों को 2020 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने को लेकर अपना-अपना रुख स्पष्ट करना होगा। एक अन्य पहलू यह भी की जापान में प्रचलित सिक्स सिग्मा पद्धति के तहत चंद मिनटों में ही पूरी बुलेट ट्रेन की सफाई हो जाती है। भारत में भी इस पद्धति का प्रसार मेट्रो व सामान्य ट्रेनों तक करने से उनके रख-रखाव में सुधार के साथ स्वच्छ भारत अभियान को भी बल मिलेगा।

     अब नजरें ज़रा बुलेट ट्रेन के विरोधियों पर टिकाएँ। कुछ लोग तर्क दे रहे हैं की सामान्य ट्रेनों के सुरक्षित संचालन में असमर्थ भारत क्या बुलेट ट्रेन चलाएगा ! दरअसल, इन लोगों को यह समझना चाहिए कि सबसे पहले तो सामान्य रेलों व बुलेट ट्रेन की तकनीक में जमीन-आसमान का फर्क है, अतः ‘तकनीक’ तो इनकी तुलना का आधार बनता ही नहीं। फिर दूसरे, बुलेट ट्रेन के भारत आगमन से भारत भी विश्वस्तरीय रेल तकनीक से लैस हो पाएगा। भारतीय रेल-विशेषज्ञों, इंजीनियरों आदि को भी विश्वस्तरीय रेल प्रणाली का अनुभव मिलेगा और फिर ये इस अनुभव का उपयोग परंपरागत भारतीय रेल व्यवस्था के सुधार-संवर्धन में कर सकेंगे। ध्यान दें, ऐसा ही विरोध मोबाइल, इंटरनेट व मेट्रो के भारत आगमन पर भी हुआ था, इन्हें भी संभ्रांत वर्ग से जोड़ा गया था, मगर आज परिणाम सभी के सामने हैं।

     गौरतलब है कि एक लाख आठ हजार करोड़ की इस परियोजना में जापानी सहयोग 88 हजार करोड़ रुपए का है। विरोधियों का तर्क है कि यदि इस भारी-भरकम धनराशि का प्रयोग कृषि-संवर्धन तथा सीमा-प्रबंधन में होता तो अन्नदाता व राष्ट्ररक्षकों का भला होता। पर ध्यान रहे कि इज़रायल के सहयोग से कृषि तकनीक संवर्धन व सीमा प्रबंधन की दिशा में कार्य जारी है, मगर बुलेट ट्रेन की अपनी अलग महत्ता है। उपरोक्त तर्कों के आलोक में स्पष्ट है कि वर्तमान परिदृश्य में बुलेट ट्रेन का विरोध उसके आर्थिक महत्व को कम करके आँकना होगा।

© इंजी. द्विजेन्द्र कौशिक, , दिल्ली

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