लेखक की कलम से

अनुराग …

 

 

अनुराग तुमसे प्रियतम इतना

बता ना पाऊँ है कितना

 

सितम तुम हमसे न करना

हमारे दिल में तुम रहना

 

शक्य जो हो सके वहीं करना

निरापद हो अनुराग करना

 

 

ज़ख्म हमें कभी मत देना

हाथ थाम कर तुम चलना।।।

 

©अर्पणा दुबे, अनूपपुर                   

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