काबर भटके रे …
मोर भुइंया के भगवान,
आज हो के हलाकान,
काबर भटके रे, भटके रे,
गांव गली खोर–2
जेन दुनियां ल सिरजाथे,
जेन बिगड़े ल बनाथे,
काबर भटके रे, भटके रे,
गांव गली खोर–2
कतको चेताएंव बेटा,
झन जा तै बाहर म ग।2
गांव म दया मया मिलथे,
का रखे शहर म ग।।
दाई ददा ह तोर संगी-2,
होगे हे हलाकान–
काबर भटके रे—-
पापी पेट के खातिर संगी ,
गांव ले नता तोड़े ग-2
पथरा के मनखे संग,
तेहा मया जोड़े ग।।
रात दिन कमाके-2,
तेहा होगे हस मसान —–
काबर भटके—-
मोर गांव के छैन्हा भुइंया,
छोड़ के कहां जाबे रे–2
घूम आजा दुनिया ल,
अईसन मजा कहां पाबे रे।
छल, कपट के डगर म-2
कहां पाबे तै ईमान—
काबर भटके रे—–
परदेसिया मनखे कभू,
अपन नई तो होवे रे–2
करके छेदा चन्नी म,
करम ल काबर धोवे रे।।
दूसर घर ल सरग बनाये2
अपन घर ल शमशान।।
काबर भटके रे—–
बनके मजदूर बेटा ,
काबर हस मजबूर रे-2
आंखी ले आंसू चुहे,
सपना होगे चूर चूर रे।।
लहुट के घर आजा2,
कहिना प्रखर के मान—
काबर भटके रे——
खा लो तुमन किरिया ,
अब गांव ल नई तो छोड़न रे-2
अपन लोग लईका से,
अब मुख ल नई तो मोड़न रे।।
ये कोरोना के सीख ल-2,
अब जिनगी भर तै मान-
काबर भटके रे——
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)