लेखक की कलम से
तोहमत लगाई जा……..
प्यार पर ऊंगली उठाई जा रही है
फिर कोई तोहमत लगाई जा रही है
सख़्त पहरे में कुएँ, तालाब, नदियाँ
प्यास ये कैसे, बुझाई जा रही है
हैं जहां पर आशियाने इन परिंदों के
बस वहीं बिजली, गिराई जा रही है
काट करके नीम आंगन का हमारे
नींव ही घर की, हिलाई जा रही है
कुछ दिनों तक सब्र रखिये आप बंधु
भूख को रोटी, दिखाई जा रही है
रास्ते संकरे पे संकरे हो रहे हैं क्यूं
ये मुहिम कैसी , चलाई जा रही है
छीन कर हम से, छतें घर की हमारे
धूप आँगन में, बिछाई जा रही है
©कृष्ण बक्षी