लेखक की कलम से

आलू चरित्र …

” गरीबी में आटा गीला होते सुना था मगर आपदा में जेब ढीला होते देखा। गीला से ढीला का तुक सब्जी बाजार में प्राप्त हुआ।इस समय बरसात और उमस की जुगलबंदी चल रही है और सब्जियों के बढ़े दाम सुर अलाप रहे हैं। हमारे लिए तो पबजी से ज्यादा संगीन सब्जी हो गया है।वह तो भला हो आलू जी का, जो विगत दो-ढाई माह से पैंतीस-चालीस रु.किलो में रहकर ‘एक भाव चलो रे’ की अलख जगा रहे हैं।गोभी, भिंडी, टमाटर,लौकी, करेला,तोरई सबने तेवर बदल लिये मगर अपने भाव  में बने रहकर  आलू स्वाभिमान का परिचय दे रहा है।

मेरे जैसे आप भी अभी बहुत से लोग होंगे जो सब्जी बाजार में बाकि सब्जियों को सम्मान से देखते होंगे मगर भाव सुनकर आलू को प्यार से देखते होंगे।हे आलू, तुम्हें शत् शत् नमन है।इस समय सब्जी बाजार में हमारी लुप्तप्राय इज्जत को तुम ही बचा रहे हो। अभी तुम्हे किलो आधा खरीदकर हम अपनी राष्ट्रीय क्षमता का दम भर लेते हैं वरना गोभी,करेला, भिंडी के दाम सुनकर ही जेब की जीडीपी गिरने लगती है।झोला भी मुंह चिढ़ाने लगता है कि जब खरीदने का दम नहीं है तो अपने साथ मेरी बेइज्जती क्यों करवा रहे हो।सब्जीवाला  हमें ताड़ जाता है कि ये भाव सबके पूछेगा और आधा किलो आलू ,कुछ यों त्यों लेकर निकल लेगा।

अगस्त से सितम्बर आते आते इधर इतना पानी गिरा कि लगा खेती बाड़ी के लिए सब बढ़िया हो गया। मगर पानी सबको तर करने की जगह डुबोने लगा। पहले तो हम आलू पर गुस्सा कर रहे थे कि बाकियों के मुकाबले यह क्यों पैंतीस चालीस रुपए किलो हुए बैठा है।एक दो बार तो भाव पूछकर आलू न लेने के कारण बखाने, कि आलू खाने से फैट बढ़ता है, इसमें कैलोरी ज्यादा है वगैरह-वगैरह , मगर आलू जी जरा भी डिप्रेश नहीं  हुए। उधर परवल, टमाटर, लौकी के भाव सुने तो मैं वापस आलू भक्त हो गया।   आलू सदाबहार है।सबको एक मन से सहयोग देता है।

 

 

          ©भिलाई से आलोक शर्मा की रपट          

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