लेखक की कलम से
इत्तेफाक ही तो है …
तुमसे मिलना इत्तेफाक ही तो है,
जुड़े रहना मन की डोर से,
प्रेम भरी सौगात ही तो है।
छलक रहा है आंखों से अश्क,
ना बहने देना ख्यालात ही तो है।
रास्ते छोड़ तेरे संग,
पगडंडियों पर चलना,
राज ही तो है।
मौसम के साथ तेरा ना बदलना,
तुझमें कुछ बात ही तो है।
आशा और निराशा के चक्र में,
हर पल तेरा साथ देना,
विश्वास ही तो है।
हर वक्त तेरे ख्यालों में खोए रहना,
जज्बात ही तो है।
देखो ना ए मेरे हमसफर,
लौट आई है फिर से बहारे,
नवजीवन का संचार ही तो है।
यूँ इस जहाँ में तुमसे मिलना,
इत्तेफ़ाक़ ही तो है।
©ममता गुप्ता, टंडवा, झारखंड