लेखक की कलम से
व्यवस्था …
जमाना सख्त होकर जब किसी को सताएगा ।
तभी कोई लड़े जंग और तलवारे उठाएगा ।।
व्यवस्था हो चली नाकाम ऐसी आज इतनी क्यों ।
उठा आवाज अपनी बात कोई तो सुनाएगा ।।
अमीरों ने किया शोषण गरीबों का हमेशा ही ।
कब्रों पर क्यों भवन ऊँचे गगनचुम्बी बनाएगा ।।
सुधर पाये न यदि हम जिन्दगी दूभर होगी ।
समय की माँग को तब वक्त कैसे फिर चुकाएगा ।।
समझ उसको खिलोना जब जमाना खेल खेलेगा ।
उतर कर कों धरा पर हौसला उसका बढ़ाएगा ।।
©डॉ मधु त्रिवेदी, आगरा, उत्तरप्रदेश