लेखक की कलम से
दुआओं की गुल्लक …
यादों की गुल्लक रखी है। मैंने
अपने सिरहाने बड़ी सी…
रोज रात को सोने से पहलेभर देती हूं उसमें दिन भर में बिताये
हसीन पल, खट्टी मीठी यादों के पल किसी के ताने, किसी के उलाहने, किसी के लिए जलन
और किसी के प्रति गुस्सा
सब ही समाहित हो जाते हैं उस गुल्लक में और यूं राजी हो जाती हूं ।
मैं खो जाती हूं, सुंदर सपनों में, जब भी दिल भारी होता है।
उडे़ल कर सब बोझ
उस गुल्लक में हल्की हो जाती हूं
मैं एक और गुल्लक भी है मेरे पास
उसमें जमा करती हूं मैं दुआएं
रोज सुबह उसमें से कुछ दुआएं निकालती हूं।
दिन भर खर्चती हूँ।
फिर डरती हूं कि कहीं
गुल्लक रीत न जाए
भरती हूं।
दिन प्रतिदिन गुल्लक को भरती हूँ
लोगों की दुआओं से कि आड़े वक्त यही तो काम आएंगी।
सम्भाल कर रखती हूँ।
दुआओं की गुल्लक ???
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा