लेखक की कलम से

बिछुड़न …

सुनो!!

मैं जान गई हूँ _

कि मैं विलग हो रही हूँ तुम से _

या तुम विमुख हो रहे मुझ से _

पृथक, अलगाव _

विरह, वियोग, विछोह _

न जाने क्या – क्या ……

ये सारे पर्यायवाची शब्द __

तुमने बना दिये हैं _

मेरे लिए।

तुम्हें पता है?

‘बिछुड़न’ शब्द के बाद _

बिखर जाने की अनुभूति _

होती मुझे।

मगर,

ना टूटुँगी मैं,

ना बिखरुँगी_

कैद कर लुँगी खुद को _

कठोर आवरण में _

उस कछुए की तरह_

और समा जाऊँगी _

सागर की अनंत गहराइयों में,

हो जाउंगी _

किसी अन्धेरी गुफा में _

चिर निन्द्रा में लीन _

मुक्त कर दूँगी तुम्हें _

सदा के लिए। ।।।।

 

 

©कामिनी सिंह, कटिहार, बिहार                  

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