लेखक की कलम से
जेठ मास …
भाव की भूख लिए
सरल सा दुख लिए
फिरती हूं मारी मारी
जेठ की दुपहरी सी
सागर की रेत सी
जलती हूं कण कण
बूंद-बूंद शीतलता
तरसे बाहर भीतर
ढहती हूं पल पल!
©लता प्रासर, पटना, बिहार
भाव की भूख लिए
सरल सा दुख लिए
फिरती हूं मारी मारी
जेठ की दुपहरी सी
सागर की रेत सी
जलती हूं कण कण
बूंद-बूंद शीतलता
तरसे बाहर भीतर
ढहती हूं पल पल!
©लता प्रासर, पटना, बिहार