लेखक की कलम से

हेमलता ने पशु प्रेम की मिसाल पेश की, मौत के मुंह में धकेल दी गई चंपी को बचा लाई

पुणे (प्रसून लतांत)। पुणे की वडगांव शेरी की एक लेखिका और समाज कर्मी हेमलता म्हस्के मौत के मुंह में धकेल दी गई एक साधारण और आंशिक रूप से दिव्यांग कुतिया को आनन-फानन में अपने प्रयासों से बचा ले आई। लोग इसे पशु प्रेम की मिसाल बता रहे हैं और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह हुई है कि इलाके के स्त्री, पुरुष, युवा, बच्चे और बुजुर्ग भी अब जानने लगे हैं कि बेजुबान पशुओं के भी अधिकार होते हैं और उनके प्रति हमारे भी कुछ कर्तव्य होते हैं। यह जागृति हेमलता के प्रयास की कामयाबी के बाद सहज ढंग से फैल रही है।

आमतौर पर अपने देश में गली मुहल्ले में लावारिस और लाचार कहे और माने जाने वाले कुत्तों की हालत बहुत दयनीय है। लोग उनके साथ क्रूरता के व्यवहार में किसी भी हद तक चले जाते हैं, यहां तक कि बेहिचक उसकी जान तक भी ले लेते हैं। हकीकत यह है कि ऐसे में ये कुत्ते लाचार और लावारिस इसलिए हो जाते हैं कि हम उनके प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते। सदियों से मनुष्य के आसपास उनके सहयोगी बनकर रहते आए कुत्तों को लेकर हमारा समाज बहुत क्रूर है। मानवीय समाज कुत्तों के योगदान को कभी समझने की कोशिश ही नहीं करता। हेमलता बेजुबान पशुओं के प्रति बचपन से ही संवेदनशील रही हैं और आज जब उसकी अपनी बच्ची जैसी प्यारी कूत्ती चंपा को मौत के मुंह में धकेल दिया गया तो उसको बचाने के लिए उन्होंने अपने प्रयासों की झड़ी लगा दी। नतीजतन जो लोग उसके हाथ पांव बांध कर चंपी को दूर किसी खतरनाक नाले में फेंक आए थे उनको ही चंपी को उसकी पुरानी जगह पर पहुंचाने के लिए विवश होना पड़ा।

हेमलता ने अपनी आपबीती में बताया कि दोपहर से मन कहीं नहीं लग रहा था । आंखों से आंसू भी रुक नहीं रहे थे । आयुष ( मेरे सबसे छोटे बेटे ) ने आकर खबर ही ऐसी दी, जिसे सुनकर मन सुन्न हो गया। मैंने बहुत दुख से चिल्लाते हुए आयुष से पूछा , ” तू झूठ तो नहीं बोल रहा ” .? उसने कहा, नहीं मम्मी , मैं बिलकुल सच कह रहा हूं , कुछ लोग चंपी का मुंह और पैर डोरी से बांध रहे हैं। वे लोग उसे कहीं दूर छोड के आने वाले हैं । मैं देख कर आया हूं । उसकी बात बीच में ही काट कर पूछा, कितने लोग उसे बांध रहे हैं ..? ‘ दो लोग हैं मम्मी” यह वही कुत्ति है, जो मेरे पड़ोस में रहती है। वह ठीक से देख नहीं पाती और ना ही ठीक से सुन पाती है । वह हमारे इलाके में रोड पर एक गैराज में गाडी के नीचे डर से छुपकर रहती है। हम उन्हें रोज रात को खाना देते हैं और प्यार भी। चंपी रोज रात बारह बजे के बाद मेरे आने का इंतजार करती है । खुद ही डर डर कर जीने वाली चंपी के साथ इतनी बडी साजिश की जा रही है। यह सोच सोच कर मैं हैरान और परेशान हो रही थी। हेमलता बताती हैं कि जब चंपी को मेरे पड़ोसी ही बांध कर दूर ले जा रहे थे तब मैं किचन में काम कर रही थी। मैं काम छोड़ कर भागती हुई उस गाडी के पास चली गई और मैंने उनसे पूछा, चंपी कहां है तो उन्होंने हंसते हुए कहा, गाडी के अंदर। मैंने चारो ओर नजरें घुमाई तो देखा सभी के चेहरे पर कुटिल हंसी थी। मैंने सख्ती से पूछा ” क्यों लेके जा रहे हो ” ? उनमें किसी एक ने जवाब दिया “इंजेक्शन लगवाने “। इस पर गाड़ी के अंदर बैठे और तीन जन भी हंसने लगे। फिर मुझे बिना कोई संतोषजनक जवाब दिए गाडी को लेकर चले गए।

उनकी कुटिल हंसी मुझे बहुत चूभ गई। मन मान ही नहीं रहा था कि वे लोग चंपी को इंजेक्शन दिलाने गए होंगें। मन कह रहा था कि वे लोग चंपी को मर जाने के लिये कहीं दूर खतरनाक जगह पर छोड़ने गए हैं। यह आवाज मेरे अंदर से आ रही थी । मैं चंपी की बरामदगी के लिए बैचैन हो गई। हेमलता ने बताया कि मैं मामले को पुलिस के पास ले जा सकती थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने मौके पर पशु प्रेमियों और वकील के साथ पड़ोसियों से सख्ती से संवाद किया तो वे चंपी को वापस लाने के लिए विवश हुए। इसके पहले चंपी को बचाने के लिए हेमलता ने फौरन फोन से पशु प्रेमियों से संपर्क साधा।

लखनऊ की एम आर एस पी सेवा समिति के संयोजक और विख्यात पशु प्रेमी प्रदीप कुमार पात्रा ने उनका मार्गदर्शन किया। फिर पुणे में बेजुबान पशुओं के हित में काम करने वाली सरोज जी से बात हुई तो उन्होंने मौके पर अपने प्रतिनिधि भेज दिए जिनकी मदद से चंपी को वापस लाने में कामयाबी मिली। हेमलता का कहना है कि आनन फानन में कोशिश नहीं करती तो चंपी कुछ ही घंटों की इस दुनिया की मेहमान रहती और असमय विदा हो जाती।

हेमलता के प्रयासों पर लोग कई तरह की प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे हैं , लेकिन हेमलता ने सभी को सहज तरीके से बिना कोई फौजदारी कार्रवाई के यह पाठ अपने इलाके के लोगों को पढ़ा ही दिया है कि बेजुबान पशुओं पर अत्याचार करने की किसी को छूट नहीं है। और जो इन पर ज़ुल्म ढाएंगें तो उनकी खैर नहीं। ठीक से पैरवी होगी ती दोषी जेल जा सकते हैं और उनके खिलाफ अदालत सजा भी सुना सकती है।

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