लेखक की कलम से

सन्नाटा लाकडाउन का …

 

हर तरफ नजर आता है बस एक सन्नाटा.. जैसे पसर गया है दूर-दूर तक सड़कों पर, मुल्लों, बाजारों, सब जगह। और इसी सन्नाटे के बीच सुनाई पड़ती है पक्षियों का कलरव, हवा की सरसराहट, कोयल की कूक जो सुनना शायद हम भूल ही गए थे। क्योंकि उसको दबा दिया था हमने अपने भौतिक सुख-सुविधाओं की तह में कहीं। और भूला बैठे थे प्राकृतिक संसाधनों को।

लेकिन प्रकृति भी तो चाहती है अपने हिस्से का जीवन… जिस पर हम अधिकार जमा कर बैठ गए हैं और स्वयं को आधुनिक होने का दावा करते हैं, देना ही नहीं चाहते हम उसके हिस्से की सांसे, पानी, भोजन सब पर कर बैठे हैं अतिक्रमण। हम भूला बैठे हैं सन्तुलन का नियम.. यह दूर- दूर तक पसरा सन्नाटा, और इसी में कैद हम, हमारी असीमित भौतिक भूख का परिणाम है।

परन्तु प्रकृति जानती है समानता का नियम उसको सन्तुलन करना भलीभांति आता है और अनन्त उसको करना ही पड़ा यह। बहुत दोहन किया है प्राकृतिक संसाधनों का हमने उसी का नतीजा है ये (लाकडाउन) आज अपने ही रचे चक्रव्यूह में फंसे हैं हम।

विरोध और विद्रोह करना आता हर किसी को है, बस कब तक नहीं करता यह निर्भर करता है उसकी सहनशक्ति पर और प्रकृति की सहनशक्ति जवाब देने लगी है शायद।

हम अभी भी नहीं जागे तो ए आपदाएं झेलने को तैयार रहें ..

“ऐ मानव”

‘खत्म होगा तभी ए किस्सा

मिलेगा सभी को जब उसका हिस्सा ‘…।

©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा

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