लेखक की कलम से

तुम्हारा शाप…

ठुकराया था न मैंने

तुम्हारे निर्मल प्रेम को!!!!!

तुम्हारी आँखों ने

उसमें गहराती उदासी ने

दे दिया था शाप शायद

ताउम्र आधा-अधूरा

रह जाने का।

आज प्रेम से रीता मन

और रीते हाथ लिए

भटक रही हूँ

स्मृतियों के अरण्य में

तलाश रही हूँ उस निश्छल प्रेम को

काश उस प्रेम का अहसास ही

कहीं मिल जाये इस अरण्य में

जिसके नेह से,

यह सूखी देह और मन

फिर से हरित हो उठे….

-सविता व्यास

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