लेखक की कलम से
धान लायेगा किसान
ग़ज़ल
जब खलिहान से भरकर ,वो घर में धान लायेगा
कहीं जाकर वो तब बाज़ार का ,क़र्ज़ा चुकायेगा
तुम्हारे इन गुनाहों का चलेगा ,तब पता तुमको
हमारे शहर का हर शख़्स जब ऊँगली उठायेगा
मुझे मालूम है वो पाँव , ज़ख़्मी करके भी अपने
हैं जितने राह के पत्थर, वो सब के सब हटाएगा
समन्दर में उठा ये जलजला,ले जायेगा सब कुछ
जो तेरी कश्तियाँ काग़ज़ की हैं, कैसे चलायेगा
हैं हारे तुझ तलक आके,ये बाज़ी हम मोहब्बत की
तू इतना तो बता मुझ को, कहाँ तक आज़मायेगा
मैं तेरी बाट में बैठा हूँ, सदियों से अंधेरों में
तू अपने हाथ से आँगन मे,कब दीपक जलायेगा
तुम्हारी कोशिशें होंगी, उसे भी ख़ाक कर डालें
इकट्ठे करके तिनके, जब कभी वो घर बनायेगा
(सवालों की दुनिया )