लेखक की कलम से

मधुर भोर …

रवि किरणों से उज्जवल हो गयी,

देखो आज धरा।

नव उमंग एक नव उत्साह,

मन में आज भरा।

खुशियों की खिल जाएं कलियाँ,

नवल पराग झरा।

भजले हरि को ओ मन मेरे,

बने जो है बिगरा।।

©स्वर्णलता टंडन,

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