लेखक की कलम से

मुस्कुराते चलो…

मुस्कुराते चलो,

कुछ मुश्किलों से सीख,

गुनगुनाते चलो,

राह में मिलेंगे,

कुछ और दुःखी,

कुछ उनका भी दुःख,

बटाते चलो,

खुशियां दे कर अब सबको,

कुछ नया गीत,

गाते चलो,

माना कष्ट तुम्हे भी हैं,

इनसे भी कुछ,

नया सीखते चलो,

देखो प्यारी प्रकृति अपनी,

कुछ इनसे भी बातें करो,

कुछ कहती है,

मौन की वाणी,

कुछ उनको भी,

सुनते चलो,

कुछ वृक्षों से करो वार्ता,

कुछ पशुओं से बातें करो,

पक्षियों की चहचहाट

कुछ कहती,

चलो उसे भी सुनते चलो,

बहुत सिखाता हर तत्व

यहाँ पर,

सबसे कुछ ज्ञान लेते चलो,

बस दुःख बटाते चलो,

सुख देते चलो,

मुस्कुराते चलो,

गुनगुनाते चलो,

सबको गले लगाते चलो,

प्रेम कुछ यूं लुटाते चलो,

एक परिवार सी ह ये धरा,

बस सबको अपना बनाते चलो,

बस सबको अपना बनाते चलो।।

– अरुणिमा बहादुर खरे

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