लेखक की कलम से

फैलता हुआ फैलाव …

व्यंग्य

अपने देश में वही चीजें फैलती हैं जिन्हें फैलाया जा सकता है। रायता फैलाने के लिए होता है सो उसे जमकर फैलाया जा रहा है।  बूंदी छोटी छोटी होती हैं जो दही में भीगकर रायता हो जाती हैं।असली खेल तो दही का होता है।दही जमाने से जमता है। आजकल यह दूध के अलावा दिमाग में ज्यादा जमाया जा रहा है। समझ में नहीं आता कि जमाने वाला इतना जामन कहां से पाता है कि सबके दिमाग में दही जमाता है।सोशल मीडिया ने हर आदमी को समझदार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हर आदमी अंधा बना दिया है।हर आदमी अपनी समझदारी का पोस्ट डालकर लाइक और कमेंट डिपॉजिट करके सामने वाले से कहता है,इसे शेयर करके इतना फैलाओ कि सबको समझ में आ जाए। एक ही बरसात में जंगली घास तुंरत फैल जाती है। समझदारी अगर फैलने से आ जाती तो दुनिया में मेरे जैसे नासमझ ढूंढने से नहीं मिलते।

अच्छे को अच्छा कई बार कह लो मगर एक बार कोई बुराई की तो वह जड़ तक फैल जाएगी। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि अफवाह भी फैलने वाला वायरस है जो बड़ी तेजी से वायरल होता है। समय का सच एक अफवाह है जिसे सब झूठ मिलकर फैला देते हैं।बचाव ही सुरक्षा है। बचने के लिए न झूठ बोलिए न सच बोलिए, डेमोक्रेसी कहती है आप तो डिप्लोमेटिक रहिए। खैर साहब वायरस फैल रहा है। महामारी शब्द से ही फैलाव की अनुभूति होती है। वैश्विक आपदा है। ये तो तभी रुकेगा जब कोरोनावायरस खुद ही कहेगा,न फैलूंगा न फैलने दूंगा!

जो एक बार फैल जाती है फिर वो कहां घट पाती है। महामारी फैली हुई है कई से कईयों तक। रोजगार का टोटा है। बेरोजगारी फैली है हजारों से लाखों तक। जनसंख्या से लेकर वायरस तक चीन ही चीन फैला है। विस्तारवादी देश है।दोस्ती के लिए हाथ मिलाकर वो कब उसकी ही जमीन हड़पने की दुश्मनी फैला दें कोई भरोसा नहीं। जनसंख्या में वो नंबर एक हैं और अपन नंबर दो।हम  सामने वाले को डराने के लिए एक सौ तीस करोड़ आबादी बताते हैं तो अगला बिना डरे हमको मार्केट समझ लेता है।बोरा बिछाकर तसल्ली से बैठ जाता है सामान बेचने।उसकी बिक्री फैल जाती है और हमारी बेफिक्री।रस्ते का माल सस्ते में लेकर हमारी घरेलू अर्थव्यवस्था कब वैश्विक व्यापार में लिप्त हो गई पता नहीं।वो तो चीन बाहर से अटैक किया तो हमें भीतर के फैले हुए झटके महसूस हुए।

इस समय का सबसे बड़ा सत्य आर्थिक है। अर्थ से ही विकास होता है। विकास राजनीतिक है कि अपराधिक, इसका उत्तर ‘प्रदेश’ में नहीं मिला, तो मीडिया ने कवरेज को राष्ट्रीय फैलाव दिया । टीआरपी महामारी से भी तेजी बढ़ती है और बिना चटखारे के नहीं घटती है। फैलते कवरेज में टीआरपी उछलती कूदती है। कानून दौड़ा रही है, विकास भाग रहा है।

कुछ लोग कहते हैं विकास पकड़ा जाएगा तो कुछ कहते हैं विकास मारा जाएगा, मगर क्या आठ पुलिस शहीदों के एवज में  अपराध की फसल के कृषकों को कभी कोई बंदी बना पाएगा? थामिए जी थामिए नहीं तो अपराध फैलने वाली चीज है, जिसे जब भी विकास सताएगा वो तो उसे फैलाता जायेगा!

 

    ©आलोक शर्मा, भिलाई                              

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