लेखक की कलम से

पाकिस्तान में सिखों पर हमला क्या आइना नहीं?

पाक में सिखों पर हमला भारत के उन तमाम राजनीतिक दलों व संगठनों के लिए आईना है जो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध कर रहे हैं। भारत ने पाक, बांग्लादेश (1947 से पहले भारत का ही हिस्सा) और अफगानिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों व वहां से आकर भारत में अवैध रूप से रह रहे वहां के अल्पसंख्यकों के लिए सीएए के जरिए नागरिकता का दरवाजा खोला है।

भारत ने इन अल्पसंख्यकों को नागरिकता देकर उन्हें स्वाभिमान से जीने का अवसर प्रदान किया है। चूंकि प्राचीनकाल में ये तीनों देश किसी न किसी रूप में भारत के अंग रहे हैं, इसलिए भारत का फर्ज बनता है कि वहां सताए जा रहे अल्पसंख्यकों को भारत स्थान दे। वर्तमान सरकार ने यही फर्ज निभाया है। भारत में सीएए का विरोध कर रहे लोगों को पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर जारी अत्याचार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

सीएए में केवल नागरिकता देने के प्रावधान के बावजूद विपक्षी दलों व कुछेक सामाजिक संगठनों का स्यापा खड़ा करना नागरिकता कानून के प्रति भ्रम फैलाना है। भारत सरकार ने पाक को दो टूक कहा है कि दूसरे देशों को लेक्चर देना बंद करके उसे अपने यहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, लेकिन अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को लेकर पाकिस्तान बार बार बेनकाब होता रहा है।

दक्षिण एशिया के इस्लामिक देशों में गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की रक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है। पाकिस्तान अपनी जिम्मेदारी समझे और भारत के प्रति दुष्प्रचार करना बंद करे। पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश में अल्पसंख्यक कितने सुरक्षित है, इसकी पुष्टि की दो घटनाएं करती है। पाक स्थित गुरुद्वारा ननकाना साहिब में भीड़ द्वारा शुक्रवार को पथराव और उसके अगले दिन बाद शनिवार को पेशावर में सिख युवक की हत्या। पाक नागरिक मोहम्मद हसन के परिवार पर सिख युवती के अपहरण का भी आरोप है। पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों पर जुल्म नया नहीं है।

©डॉ. अन्नपूर्णा तिवारी, बिलासपुर, छग

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