लेखक की कलम से

ये कैसा संसार …

 

तम से टकराकर करती है

पीड़ा उसकी हाहाकार

बिखर के मिट्टी के जर्रे में

ऑंसू बन के  बहती   है

ये कैसा है संसार !

 

पिघल रहे हैं ग्रह नक्षत्र भी

पवन झकोरा बदहवास

लरज रहे अश्रु रजनी के

धरती रोती चुप्पी  साध

ये कैसा है संसार!

 

खिली कली ना; मुरझाई

छितराया उसका घर द्वार

आँखों में मकरंद सजा था

हुई दरिंदों का  शिकार

ये   कैसा है संसार!

 

दीप जला ना फूल खिला

क्यों किसका उर पाषाण हुआ ?

वह अंगारों की भेंट हुई

हुई मानवता  शर्मसार

ये कैसा है संसार !

 

जीवन मोती टूट गया

टूटा   कंचन   सा  ईषार  दुर्गम  अग्नि  परीक्षा तेरी

इस शोषण का क्या है सार?

ये कैसा है संसार!

 

दृग से झड़ते अग्नि कण हैं

और हृदय से ज्वाला ज्वाल

नाश में जलता शलभ  है देखो

निष्ठुर है दीपों का राग

ये कैसा है संसार!

 

सूने नयन में सपने उजड़े

माता रोए जारमजार

मिटने का अधिकार उसे ही

बोलो क्या है ये उपहार ?

ये   कैसा है संसार!

 

©बबिता सिंह, हाजीपुर, बिहार

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