लेखक की कलम से

राजनीति का स्तर …

 

राजनीति एक शब्द है जिसका ना कोई छोर।

इन शब्दों से खेलता है यह खद्दर वाले मिट्टी के सेर।।

कहते हैं हम हैं बलिदानी भारत माता के हैं लाल ।

क्या वास्तव में यह है बलिदानी तो खाकी वाले क्या हैं आज ll

 

अंगूठा टेक या अधकचरा सा पढ़कर धारण कर लिया खादी के वस्त्र।

फिर यह समझने लगते अपने को ही सर्वज्ञ l

एक समय राजनीति होता था सफेद आज राजनीति में केवल वस्त्र ही रह गए सफेद ll

 

मर्यादा अपने घर पर रखकर बंदर जैसे करते हरकत

कभी चीजों को सूंघ कर या फिर , उधम मचा कर करते नीच हरकत ll

 

इनका ना कोई स्तर कुछ भी कर गुजरने को तैयार ।

अपना फायदा साधने में जनता को झोकने को तैयार ll

 

एक दूसरे के ऊपर उल्टे सीधे लगाते आरोप।

बेशक तथ्य हो ना हो डंका पीटते हैं बहुत जोर ll

पहले तो जनता कहती थी यह सब है चोरों के झुंड।

अब आपस में कंपटीशन कर ढूंढते हैं चोरों के झुंड ll

 

अब जनता भी समझ चुकी है यह सब है मौसेरे लोग ।

चाहे आप जिसे चुने दूध से धुले नहीं यह लोग ll

जब जिसको मौका मिलता है हम जनता को लूटता है ।

हम तो बस दर्शक भर हैं बंदर बांट कर खाता है ll

 

नौकरशाही को अपने अंदर बंधुआ कर रखता है।

फिर खुले मंच से प्लेट धुलाने की भी करता है।।

 

अब जरूरत है जन-जन में क्रांति लाने की।

वीर भगत सिंह चंद्रशेखर और नेता जी जैसे को लाने की ll

 

अब भी ना सुधरे तो यह नोच नोच कर खाएगा।

जिसको अपना सगा समझते वही सौदा कर जाएगा वहीं सौदा कर जाएगा।।।3

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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