लेखक की कलम से

हिन्दी …

 

माथे पर तेज़, पर आँखें उदास !

इक तेजस्वी वृद्धा को, देखा है आसपास !

“कौन हो देवी?”, आशीष लेते मैं मुस्काई !

मायूस वो बोली, “पहचान तू भी ना पाई?”

 

सुन…

संस्कृत की पुत्री और माथे की बिंदी !

हूँ मातृभाषा हिन्द की, मेरा नाम है हिंदी !!

 

रहती थी मैं जिन ह्रदयों में,

अंग्रेजी वहाँ अब बसती है !

देख के मेरी दयनीय हालत,

अब वो भी मुझ पर हसती है !!

 

हिंदी -दिवस पर फिर से तुम,

मेरी गाथा गाओगे !

भाषण दे कर अंग्रेजी में,

फिर मेरा मान घटाओगे !!

 

स्तब्ध थी मैं, झुक गया शीश !

किस हक से मांगू, मैं माँ का आशीष !!

 

 

©अंजु गुप्ता

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