लेखक की कलम से

सुलगते शब्द…..

शब्दों की महिमा अनंत है इससे बंधे मानव समाज।
कभी सद्भाव तो कभी उद्गार बन निकलते हैं ये शब्द भंडार।।

अपनों के कहे दो शब्द जो मन मे भरता है उल्लास ।
कभी तीखे शब्द दिल में भरता है केवल अवसाद।।

शब्द सुलगते जब लगते हैं मानव सहित समाज पर।
अंतर्मन में दर्द दिलाता बुरा असर करता समाज पर ।।

कड़बे शब्द के दो बोल बहुत है मानव मन में भरने को द्वेष।
मानवता पर घात लगाकर सीने में भरने को द्वेष।

शब्द सुलगते पूछ रहे हैं समाज की विषमता को ।
लूट पाट की मानसिकता और भेद भाव के अंतर को ।।

शब्द सुलगते पूछ रहे हैं अट्टालिका के गुंबदों से ।
तेरे ड्योढ़ी हीरे मोती मैं बंचित पेटभर खाने से।।

सब्द सुलगते पूछ रहे हैं राजनीति के गलियारों से ।
खेल छलावा कब तक खेलोगे अपने छद्म वादों से।।

शब्दों की अपनी मर्यादा इसे बांधना अपना काम।
विकृत और बहसी शब्दो से बच कर बस रहने का काम।।

बहसी शब्द हमें गिराता समाज की नजरों में आप।
आप नजर से गिरकार फिर जगह कहाँ पाओगे आप।।

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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