लेखक की कलम से

भारत अब वाईट कॉलर नहीं ब्लू कॉलर जॉब की जरुरत होगी …

कोरोना के संक्रमण काल में लोगों की जान जाने के खतरे के साथ-साथ एक खतरा नौकरी जाने का भी मंडरा रहा है। हर कोई ये सवाल पूछ रहा है कि अब कितनों की नौकरी जाएगी और किसको आगे नौकरी मिलेगी। एक अनुमान के अनुसार भारत में करीब 4 करोड़ लोगों का रोजगार जाएगा और पहले से ही 7 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में मोदी सरकार के पास सबसे बड़ा सवाल यही हो रहा है कि कैसे रोजगार के अवसर बनेंगे। मेरे हिसाब से अब देश में व्हाइट कॉलर नहीं बंल्कि ब्लू कॉलर जॉब की जरुरत होगी।

व्हाइट कॉलर जॉब यानि काम के बाद भी आपकी कॉलर व्हाइट यानी सफेद बनी रहने वाला जॉब। असल में ये दफ्तर में बैठकर ही काम करने वाले लोगों के लिए बनाया गया एक मुहावरा है। इसे हम पहले अंग्रेजी शासन की लार्ड मैकाले वाली पॉलिसी पर बनने वाले क्लर्क के लिए करते रहे तो बाद में ये साफ्टवेयर जॉब के लिए कहा जाने लगा लेकिन कोरोना के बाद मंदी का बड़ा दौर आने वाला है। ऐसे में व्हाइट कॉलर जॉब पर सबसे बड़ा संकट आने वाला है। दूसरा संकट जाहिर है मटमैली कॉलर यानि मेहनत मजदूरी से अपने कपड़ों पर धूल जमा लेने वालों पर भी आने वाला है तो फिर आखिर रास्ता क्या होगा। इस सवाल पर अभी से सोचना होगा।

मगर आप निराश ना हों। अब तो नए अवसरों को देखना चाहिए। भारत में अब अमरीकी, जापानी और यूके की कंपनियां निवेश की तैयारी कर रही हैं। चीन से लोगों का विशवास घटने लगा है। ऐसे में ये सब भारत में आना चाहते हैं लेकिन क्या भारत इसके लिए तैयार है। शायद नहीं। क्योंकि ये कंपनियां भारत में केवल सस्ती मजदूरी के लिए नहीं आ रहीं हैं। उनकी प्राथमिकता सुरक्षा के साथ स्किल्ड लेबर की होगी। भारत सरकार ने 5 साल पहले स्किल्ड इंडिया और मेक इन इंडिया की बात भी की थी लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रुप से दोनों ही कार्यक्रम नाकाम हो गए। स्किल्ड इंडिया सिलाई-कढ़ाई केन्द्र या कम्प्यटूर ट्रेनिंग तक ही रहा लेकिन रोजगार नहीं दे पाया।

अब जरुरत है कि हम आने वाली कंपनियों के हिसाब से खुद को तैयार करें। एक स्टडी के अनुसार आने वाली ज्यादातर कंपनियां तीन स्किल्र रोबोटिक्स, आटोमेशन और मशीन लर्निंग पर आधारित होगी। जिसमें साथ में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की जरुरत होगी। आप सोच रहे होंगे कि इसके लिए तो इंजीनियर बनना होगा लेकिन दुनिया भर में ब्लू कॉलर जॉब करने वाले लोगों में से 90 प्रतिशत इंजीनियर नहीं होते। वो तो केवल रोबोटिक्स और आटोमेशन के साथ काम करना जानते हैं।

इसको हम भारत की मारुति सुजुकी से समझ सकते हैं। जहां एक कोने से कार को जोड़े जाने की शुरुआत होती है। पहले कार की बाडी में मशीनों के जरिए ही इंजन लगाया जाता है तो फिर कहीं सीट, कहीं स्टेएरिंग और दरवाजे और आखिरी में एक्सेसेरीज लगाई जाती है। इसे अंसेंबली लाइन प्रोडेक्शन कहते हैं। यहां काम करने वाले 80 फीसदी से ज्यादा कामगार है आटोमोबाइल इंजीनियर नहीं होते।

आने वाले समय में भारत में ज्यादातर ऐसी ही कंपनियां आने वाली हैं। चीन में भी मास प्रोडक्शन की वजह ही असेंबली लाइन प्रोडक्सन थी। इसके लिए भारत में बहुत कम लोग तैयार हैं। अब सवाल उठता है कि कैसै तैयार हुआ जाए। भारत में बहुत से इंजीनियरिंग कालेजों में रोबोटिकस, आटोमेशन और मशीन लर्निंग के पाट्यक्रम शुरु हुए हैं लेकिन इन तक पहुंच केवल इंजीनयिरों की है। जिनकी बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि पिछले साल भारत में इंजीनयरिंग की करीब 3 लाख सीटों में से 55 हजार खाली रह गए। उसकी वजह यही है कि इंजीनयरिंग की पढ़ाई में थ्योरी तो पढ़ाई जाती है प्रैक्टिकल नहीं। भारत में इंजीनियरों की नहीं आटोमेटेड मशीन स्किल की सबसे ज्यादा जरुरत है। आईटीआई इसमें सबसे बेहतर योगदान दे सकते हैं लेकिन मुश्किल ये है कि आईटीआई को अब तक दसवीं के बाद पढाई नहीं करने वालों की जगह ही मानी जाती है और वहां भी ट्रेनिंग लेथ मशीन या कटिंग मशीन जैसी मैनुअल की जाती है। इस क्षेत्र में निजी और आधुनिक आइटीआई को बढ़ाना होगा जो नयी टेक्नालाजी में निवेश कर सकें। अगर ये हम कर पाए तो 3 साल बाद भारत में रोजगार के नए अवसर बन सकते हैं।

©संदीप सोनवलकर, मुंबई

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